बुधवार, 12 अक्तूबर 2022

यादें मुलायम पार्ट 2

 मुलायम सिंह यादव से जुड़ा दूसरा संस्करण उस ज़माने का है जब वो देश के रक्षा मंत्री हुआ करते थे, हमारे तत्कालीन संपादक रजत शर्मा जी ने किसी रक्षा सौदे से जुड़ा कोई सवाल उनसे पूछने का मुझे सीधे निर्देश दिया था.. तब मोबाइल फ़ोन जैसी कोई सुविधा थी नहीं तो सीधे कैमरा यूनिट उठायी और सीधे पहुँच गया समाजवादी पार्टी के दफ़्तर …. वहाँ उस समय शायद जगजीवन नाम था उनका वही उनके खास थे जो प्रेस से डील करते थे तो मैंने जगजीवन से कहा कि एक बहुत महत्वपूर्ण मुद्दे पर एक छोटा सा इंटरव्यू करना है उस समय इतने न्यूज़ चैनल भी नहीं थे तो कहने पर इंटरव्यू मिल भी जाता था लेकिन मैं तब चौका जब जगजीवन ने बताया कि नेताजी बहुत बिज़ी हैं और इंटरव्यू के लिए उपलब्ध नहीं हैं, मुझे तब तक इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि मुलायम सिंह इस सवाल को टाल रहे हैं तो मैंने जगजीवन को धमकाया, देखो भाई आज इंटरव्यू नहीं मिला तो आगे से किसी प्रेस कांफ्रेंस की भी रिपोर्टिंग नहीं होगी, ANI को मना कर दूंगा और मैं आकर भी रिकॉर्ड नहीं करूंगा… 



तभी मुलायम सिंह पार्टी दफ्तर से निकलने लगे, जगजीवन ने आगे बढकर उनके कान में कुछ फूंका और उन्होंने इशारे से हमें साथ आने को कहा, हम एस्कॉर्ट के पीछे पीछे गाडी लगाए चलते रहे, काफिला अमौसी हवाई अड्डे पर जाकर रुका, हमें तब तक पता नहीं हम जा कहां रहे, मैने दौडकर मुलायम सिंह जी को पकड़ा- 2 मिनट लगेगा यहीं कर लेते हैं दो सवाल पूछने हैं बस…

मुलायम सिंह जी ने मुझसे कहा- साथ चलो प्लेन पर इंटरव्यू दूंगा, 

जाना कहां है ? मैने पूछा 

इलाहाबाद एक कार्यक्रम है लेट हो रहा है.., 


मरता क्या ना करता चढ गया, एयरफोर्स का VIP  रक्षा मंत्री का प्लेन था फिर भी जैसे ही उड़ा लगा दिमाग़ की सारी नसें फट गई मुझे तो प्लेन में मौजूद एयरफोर्स के कर्मचारियों ने कुछ चिंग्वम और चिकलेट्स खाने को दी, तब कुछ राहत मिली, खैर लौटते वक्त मुसायम सिंह जी ने विमान में ही इंटरव्यू दिया, वापस लोटते ३ बज रहे थे, लखनऊ एयरपोर्ट पर सहारा का विमान दिल्ली उड़ान भरने को तैयार खड़ा दिखाई दिया, मैने निराश होकर मुलायम सिंह से कहा सारी मेहनत बेकार चेप तो दिल्ली जा नहीं पाएगा…तुरंत आसमान से ही संपर्क साध कर टेप विमान में पहुंचाने की व्यवस्था हुई, इस तरह मेरा ये मुलायम सिंह जी का सबसे सख़्त इंटरव्यू रहा।

यादें मुलायम - पार्ट 1

 मुलायम सिंह यादव नहीं रहे …, 


अपने पत्रकारिता जीवन के दौरान मेरे भी उनसे जुड़े कुछ छोटे मोटे संस्मरण रहे आज सोचा कि उनको 1 जगह संकलित कर दूं जिससे याद में बने रहें।

पार्ट १-

1996-97 की बात होगी ज़ी न्यूज़ का लखनऊ में नया नया ब्यूरो खुला था मेरा घर लखनऊ होने की वजह से मैं भी दिल्ली छोड़कर लखनऊ आ गया था यहाँ आया तो दिल्ली और लखनऊ में बड़ा अंतर देखने को मिला


ख़ैर धीरे धीरे यहाँ के रंग ढंग में ढलना शुरू किया, तब नेताओं के पीछे माइक लेकर दौड़ने वाली परंपरा नहीं थी सलीक़े से नेता प्रेस कॉन्फ़्रेन्स बुलाते थे और अपनी बात कहते थे उसके बाद पत्रकारों को जो पूछना होता था पूछ लेते थे लेकिन यहाँ समस्याएं होती थी कि हम जैसे ही सवाल पूछते थे नेताओं को तो चुभते ही थे हमारे साथियों को भी बहुत चुभते थे कई बार मैंने सुना है आज कल के  नए नए लड़के पत्रकारिता में आ रहे हैं और यह भी नहीं सोचते हैं की बुजुर्ग नेता जी को मुलायम सिंह जी नहीं बोलना चाहिए लेकिन भाई मेरा मानना था छोटे हो या बड़े हम कोई क़ैडर तो है नहीं जो नेताजी बोलें, अब भले इन सबका महत्व ना हो लेकिन तब हुआ करता था, कोई बड़ा सवाल पूछे तो उसमें भी अगर नेताजी फँसने लगे तो तुरंत उसको काटकर दूसरा सवाल पूछ देना ये कलाकारी भी होती थी . हम TV वालों ने इसका एक जुगाड़ निकाल लिया आमों पर फ़र्स्ट फ़्लोर में होने वाली प्रेस कॉन्फ़्रेन्स में जाते ही नहीं थे बस वहाँ कैमरामैन जाता था 1 दो मिनट के लिए और कटवा इस बनाके निकल ले भागा हम नीचे पूरा सेटअप लगवा लेते थे पार्क में और वहीं पर सवालों जवाबों का सिलसिला शुरू होता था।

तीखे सवाल पूछना हमारे शौक से ज़्यादा हमारी मजबूरी थी हमें अपनी स्टोरी के हिसाब से बाइक चाहिए होती थी शायद ये बात प्रिंट के साथियों को हज़म नहीं होती थी।

शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

नेता जी का हिंंदी दिवस...!!

नेता जी को आज हिंदी दिवस पर भाषण देने जाना है, 
सुबह से ही नेता जी के अंदर अजब से हिंदी प्रेम के भाव जग रहे हैं
जैसे जगते हैं साल के दो दिन देशभक्ति के भाव। 
नेता जी अपने अंदर हिंदी की दशा और दुर्दशा पर भाव उमेड़ने की कोशिश कर रहे हैं
याद करने की कोशिश कर रहे हैं शायद जीवन में हिंदी के लिए कुछ किया हो
तभी सुबह सुबह नेता जी का अंग्रेजी स्कूल में पढ़ रहा बेटा सोते से उठकर आया
पूछा - बाबू, आज स्कूल में छुट्टी है, मुझे चिड़ियाघर ले चलेंगे?
नेता जी को बेटे के मुंह से निकले शब्द ना जाने क्यों तीर से लगे।
नेता जी, बोले - ओ माई डियर सन...बाबू नहीं मुझे डैड बोल, 
कितनी बार बताऊं तू हर बार भूल जाता है, क्या इसी लिए नोटों की गड्डियां खर्च कर अंग्रेजी स्कूल में पढाता हूं। 
और चिड़ियाघर क्या जाएगा वहां तो अनपढ़ लोग जाते हैं , मैं तुम्हें ज़ू ले जाउंगा, 
लेकिन एक बार ये बात तू अंग्रेजी में तो कहकर दिखा 
बेटा बोला- बाबू क्या फरक पड़ता है, हिंदी अंग्रेजी में क्या है रखा? 
मेरी किताब में तो लिखा है कि हिंदी हमारी मातृभाषा है, फिर इसे बोलने में शर्म क्यों करना?
नेता जी बोले- बेटा हम नेता हैं, हमारे दो चेहरे होते हैं 
दो आंखें दो आंख तो सबके पास होते हैं, लेकिन हमारे पास एक असली और एक दिखाने वाले दो चेहरे होते हैं, 
चेहरे ही नहीं दो चरित्र भी होते हैं, एक असली और एक दिखाने का, 
इसलिए बेटा किताबों में लिखी बातोें पर मत जाओ
हिंदी पढ़ोगे, हिंदी बोलोगे तो बन जाओगे किसी सरकारी स्कूल के मास्टर, 
लेकिन अंग्रेजी की पढ़ाई तुम्हें बनाएगी लाट साहेब, 
इसलिए हिंदी को तू मातृभाषा भले मान लेकिन सोच ले बाप तेरी अंग्रेजी ही है। 
सोचता है कवि रजनी नेता क्या गलत कह रहा है....
आजाद हुए हमें भले 72 साल हो गए हों, लेकिन हिंदी है तो आज भी अंग्रेजी की गुलाम ही। 
इसलिए अगर सचमुच हिंदी को उसका स्थान दिलाना है तो सिर्फ एक दिन नहीं हर दिन को हिंदी दिवस की तरह ही मनाना है।

बुधवार, 6 दिसंबर 2017

सौराष्ट्र में 12 लोगों का ओपिनियन पोल

                          गुजरात चुनाव को लेकर राजनीति गरमाई हुई है, हिंदू, मुस्लिम और मंदिर मस्जिद का मसाला खूब उड़ेला जा रहा है लेकिन क्या ये मुद्दे जनता जनार्दन की जीभ से होकर दिमाग तक पहुंचेंगे...
ये तो 18 दिसंबर के नतीजे ही बताएंगे लेकिन इन मुद्दों से पहले जनता की क्या राय थी ये जाना मैंने दक्षिणी गुजरात यानी सौराष्ट्र की यात्रा में – हालांकि यात्रा निजी थी और मकसद शुद्ध धार्मिक ...लेकिन हम कलम घिसने वालों को वहां भी चैन कहां...सो द्वारका, बेट द्वारका से लेकर सोमनाथ तक की यात्रा के दौरान मैं डरते डराते लोगों को ओपिनियन पोल करता रहा...10-12 लोगों का ओपिनियन पोल ऐसा था जिसकी मुझे कल्पना नहीं थी...मुझे कश्मीर भारत विरोधी माहौल में काम करने का 5-7 साल का अनुभव था इसलिए मेरे सवाल होते थे – क्या लगता है भावेश भाई, इस बार मोदी जी की हर बार की तरह बंपर जीत होगी गुजरात में ? मतलब सितंबर के महीने में मेरी ये पूछने की हिम्मत नहीं थी कि इसबार बीजेपी गुजरात में जीतेगी या हारेगी...खैर मेरे सवालों के मुझे जो जवाब मिल रहे थे वो बिल्कुल चौकाने वाले थे...कोई कह रहा था कि नहीं पहले जैसी जीत नहीं हो सकती, कोई कह रहा था यहां बीजेपी के सिवा कोई विकल्प ही नहीं तो कई ऐसे भी थे जो अपना अकेला वोट किसी और को डाल कर बीजेपी को हराने का दम भर रहा था..उनकी नाराजगी की वजह भी जीएसटी और आधार कार्ड के बिना बैंक खातों से पैसे ना निकालने देने के नियम थे, द्वारका में मैं जिस होटल में रुका था उसका मालिक जीएसटी से परेशान था, बताइये द्वारका जैसा छोटा सा कस्बा...यहां सिर्फ श्रद्दालु ही आते हैं जो एक दिन यहां रुक कर लौट जाते हैं, पहले ही ग्राहकों का टोटा रहता था अब जीएसटी ने रेट और बढ़ा दिए तो लोग क्यों होटल में ठहरेंगे । यानी अभी तक सब बिना टैक्स के ही चल रहा था....द्वारका होटल के सामने ही पहली मंजिल पर एक अच्छा रेस्टोरेंट था...अच्छा रेस्टोरेंट इसलिए कि वहां खाना तो अच्छा मिल ही जाता है पेमेंट भी डिजिटल हो जाता है, लेकिन यहां घुसते ही मैंने रिसेप्शन पर पूछा-
पेमेंट कार्ड चल जाएगा,
वो बोला ना भाई ओन्ली कैश ...
.कैश तो है नहीं मेरे पास
आप ऑर्डर कर दो ...मंदिर कंपाउंड में ही HDFC का एटीएम है ..अधर बाजू मार्केट में SBI एटीएम है आप निकाल लो  
यानी यहां भी खाता ना बही....बाकी सब सही
द्रारका से बेट द्वारका जाने के लिए टैक्सी ली. रास्ते में ड्राइवर से बतकही शुरू की...
वो तो लगता था भरा ही पड़ा था....जीएसटी, नोटबंदी, आधार सब गिना डाले भाई ने
जहां जहां मैं डरते डरते सवाल पूछता था...वहीं थोड़ी देर में बीजेपी के बचाव की मुद्रा में आ जाता था
अरे इससे टैक्स आएगा, अरे इससे काला धन रुकेगा... जैसी मेरी दलीलें कोई मानने को तैयार नहीं था. बेट द्वारका के लिए फेरी पर सवार हुआ, बेट द्वारका के रहने वाले एक बुजुर्ग दंपत्ति मेरे साथ ही बैठे थे...मैने धीरे से उनसे बातचीत शुरू हुई पता चला दोनों ओखा गए थे, आधार कार्ड जुड़वाने ...मेहनल मजदूरी करने वाले बुड्ढे, बुढिया दोनों के अंगुलियों के निशान मशीन पकड़ ही नहीं पा रही है, दोनों गहरे सदमे में हैं, हाथ की लकीरों को उन्होंने इससे पहले कभी इतना नहीं कोसा होगा जितना आज कोस रहे हैं..वो भी तब जब लकीरें मिट गई हैं... मायूस बुढिया मेरी तरफ देखकर बोली- मतलब मेरा पैसा डूब गया....मैंने उसे समझाया नहीं नहीं – पैसा कहीं नहीं जाएगा...उंगलियों के निशान नहीं मिले तो कोई बात नहीं...आंखों की पहचान से हो जाएगा...ये भी नहीं हुआ तो भी कुछ नहीं होगा पैसा कहीं नहीं जाएगा....बुड्ढे ने बड़बड़ाकर बुढिया को गुजराती में ही कुछ कहा...फिर दोनों चुप हो गए...बुड्ढा गुजराती में ही किसी और से बात करने लगा....मैंने धीरे से बुढिया से पूछा कि क्या बोला अभी बुड्ढा ....वो धीरे से बोली- कह रहा है कि ये भी दिल्ली वाला है इसकी बातों में मत पड़...ये भी बातें ही फेंक रहा है” ….मुझे बुड्ढे पर बहुत गुस्सा आया मैं तो उसे समझा रहा हूं वो मुझे दिल्ली से आया फेंकू बता रहा है...बहरहाल नाव आधे घंटे में बेट द्वारका पहुंच गई...दर्शन किए
द्वारका फिर लौट आया .
दूसरा दिन –
दूसरे दिन मुझे सोमनाथ जाना था सुबह सुबह 6 बजे उठा होटल वाले ने कहा चाय 7 बजे के बाद ही मिलेगी, अभी जरूरी हो तो गोमती होटल के सामने चायवाला है वहां से ले लें....होटल के बाहर चायवाला बड़े आराम से चाय बेच रहा था...ये अचंभा भी द्वारकाधीश की नगरी में ही संभव है...बाकी देश की नगरी में कहीं संभव नहीं था, फीकी चाय बोली, सिगरेट मुंह में दबाई...बोला चाचा पेटीएम कर दूं.....चायवाला बोला समझ में नहीं आया..चाय में कुछ और डालना है क्या..इलायची तो डाला है
मैंने उसे हाथ से इशारा किया नहीं कुछ नहीं वो टूटे पैसे नहीं हैं – 500 का नोट है 10 रुपये की चाय के लिए 500 का नोट ठीक नहीं लगता ना....अब तक मेरा हौसला बढ़ चुका था... मैंने कोसना शुरू किया मोदी जी ने तो ऐसा बरबाद कर दिया है कि एटीएम से निकालो तो 100 रुपया निकलता ही नहीं सीधे 500 का निकलता है अब क्या करूं इसको चांटूं ...?
लेकिन हाय रे मेरा दुर्भाग्य यहां भी मेरा दांव उल्टा पड़ गया, चाय वाला बोला 500 का हो या 2000 का मुझे दो मैं चेंज दूंगा- मोदी जी को क्यों कोस रहा...वो आदमी बहुत अच्छा है देश का भला कर रहा है...कुछ लोग देश में अच्छे लोगों को काम करने नहीं देना चाहते और ऐसे ही लोग विरोध कर रहे हैं....मैंने तमाम दलीलें रखी जीएसटी, आधार, नोटबंदी...उसने सब काट दीं...मैंने अंत में पूछा – चाचा, चायवाले के नाते उसका पक्ष तो नहीं ले रहे ना...वो बोला मुझे इससे मतलब नहीं कि वो चायवाला है या देश का पीएम...सही बात को सही ही कहूंगा....मैंने पूछा तो चाचा टैक्स देते हो...मोदी जी कहते हैं कि सबको टैक्स देना चाहिए...अब वो पीछे हट गया...मैं यहां लोगों को चाय पिलाता हूं

किसी तरह रोटी का जुगाड़ करता हूं ...मैं क्या टैक्स दूंगा...मैं हाथ में चाय का कप लिए होटल की ओर चल दिया....                 

गुरुवार, 27 अक्तूबर 2016

इस दीवाली आओ हम सब मिलकर दीप जलाएं ..





इस दीवाली आओ हम सब मिलकर दीप जलाएं ..

जग में फैले अंधकार को आओ दूर भगाएं

मारकाट के तम से देखो स्याह पड़ा है नभ मंडल

दीप एक जलाकर आओ इस नफरत को आज मिटा दें

इस दीवाली आओ हम सब मिलकर दीप जलाएं ..


हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई के नामों पर फैला बहुत है अंधियारा

भाईचारे का एक दीप जलाकर इस तम को भी मार भगाएं

इस दीवाली आओ हम सब मिलकर दीप जलाएं ..


भ्रष्टाचार और लालच का दानव भी खूब फलफूल रहा

अहंकार का रावण भी तो महीने भर पहले ही फूंका था

एक बार फिर बढ़कर उसने आसमान का चूमा है

एक दीप इस अहंकार के नाम भी आज हमें जलाना है

अहंकार के रावण को इस दीवली मार गिराना है

इस दीवाली आओ हम सब मिलकर दीप जलाएं ..



कोई रटता मंदिर-मंदिर, कोई काबा काबा

फिर भी इनके मन में बैठा अंधकार ना भागा

आओ हम सब एक दीप अपने मन मंदिर में भी जलाएं

मन में बैठे महातिमिर को खुद से दूर भगाएं

इस दीवाली आओ हम सब मिलकर दीप जलाएं ..



अपने घर में घी के दीयों से उतनी खुशियां ना मिल पाएंगी

किसी गरीब के घर एक दीप जलाने से जितनी हम तक आएंगी



इस दीवाली आओ हम सब मिलकर दीप जलाएं ..

बुधवार, 3 अगस्त 2016

ऐ शहर कोई ना कहेगा अब तुझे 'बुलंद'शहर

ऐ शहर कोई ना कहेगा अब तुझे  'बुलंद'शहर
हम तो कहेंगे तुझे आदम शहर
लेकिन नहीं, आदम कितने भी अनपढ़ जाहिल रहे हों,
लेकिन इतने पाशविक तो कभी नहीं रहे होंगे;
किसी मां को, किसी १३ साल की बेटी को नहीं बनाया होगा
 उन्होने कभी शिकार
उस आदिम युग के किसी बाप को नहीं सुननी पड़ी होगी
दरिंदों का शिकार हो रही बेटी का चीत्कार,
और उस युग में किसी मां ने भी नहीं देखा होगा
अपने कलेजे का ऐसा बलात्कार
क्यों नहीं देखा होगा, मैं आपसे पूछ रहा हूं क्यों नहीं देखा होगा ?
क्योंकि वो बुलंद'शहर में नहीं जंगलों में रहते थे,
मैं कहता हूं मिटा दो ये शहर, मिटा दो ये कस्बे
आओ फिर जंगलों में लौट चलें
लेकिन उससे पहले उन सभी दरिंदों को मेरे हवाले कर दो,
उन्हें इस देश का कानून सजा नहीं दे पाएगा,
हम उन्हें जंगल में ले जाएंगे,
उन्हीं जंगलों में जहां उन्होने उस हैवानियत को अंजाम दिया था,
मैं उसी जगह ले जाकर उनका इंसाफ करूंगा, मौत नहीं दूंगा,
वो सजा दूंगा कि सुनकर जिसे याद कर पापियों के हाथ थर्राने लगें,
मुझे जंगलों में लौटना है,
जल्दी करो इस शहर में मेरा दम घुट रहा है
मुझे जंगलों में लौटना है,
जल्दी उन पापियों को मेरे हवाले कर दो।
मुझे जंगलों में लौटना है ।

मंगलवार, 6 अक्तूबर 2015

लगता है फिर चुनाव आने वाले हैं ...


लगता है फिर चुनाव आने वाले हैं ...

लगता है फिर चुनाव आने वाले हैं
पिछले दो एक हफ्तों से मुझे लगने लगा है
कि हवाएं अचानक अपना रुख बदलने लगी हैं
सूरज की तपन अचानक फिर बढ़ने लगी है
हर दिशाओं में शोर बढने लगा है
आसमान के नीलेपन में भी लाली छाने लगी है

जाने क्यों मुझे लगता है फिर चुनाव आने वाले हैं..


सड़क किनारे नागफनियों में कांटे बढ़ने लगे हैं
नन्हें पेड़ पौधे भी कुम्हलाने लगे हैं
बड़े दरख्तों की कोमल फुनगियां भी मुरझाने लगी हैं
फूलों के रंग उड़ने लगे हैं, कलियां खिलने से खौफ खाने लगी हैं

जाने क्यों मुझे लगता है फिर चुनाव आने वाले हैं..

नुक्कड़ों पर नजर आने वाले बुजुर्गों के गुट भी छितराने लगे हैं
अब शर्मा जी और खान साहब दूर-दूर नजर आते हैं
पड़ोस वाले नकवी साहब, पंडित जी से नजरें चुराते हैं

जाने क्यों मुझे लगता है फिर चुनाव आने वाले हैं..

अचानक जान पहचान वाले मुझे बताने लगे हैं कि ये हिंदू है
और वो मुसलमां है

अचानक मोहल्ले के मंदिर और मस्जिदों पर टंगने लगे हैं भोंपू

आयतों और आरतियों से मोहल्ला गूंजने लगा है



अचानक काले कारनामे करने वाले शोहदे ने पहनने शुरू कर दिए हैं झक्क सफेद कपड़े

अब वो मुझे देखकर पहले की तरह आंखे भी नहीं तरेरता,
झूठी मुस्कान के साथ बस हाथ जोड़ लेता है ...
पहले मुझे उससे डर नहीं लगता था लेकिन अब बहुत डर लगता है

जाने क्यों मुझे लगता है फिर चुनाव आने वाले हैं..


अचानक हर शहर में गायों भरे ट्रक पकड़े जाने लगे हैं
पता नहीं ट्रक वाले ही गायों को पकड़वा रहे हैं
या पकड़ने वाले ही ट्रकों को भर-भरकर ला रहे हैं
ना जाने वो कौन हैं जो बेगुनाह बेजुबानों को कटवा रहे हैं

जाने क्यों मुझे लगता है फिर चुनाव आने वाले हैं..


अचानक चीजों के दाम दोगुने हो गए हैं
दाल, चावल, आटा आसमां में उड़ रहे हैं
आलू, टमाटर, टिंडे जमीन पर अपने अपने रंग दिखा रहे हैं
दुकान का सेठ अपने मुनीम को समझा रहा है
10 पेटी इलेक्शन खर्चे के लिए भी निकालना है

जाने क्यों मुझे लगता है फिर चुनाव आने वाले हैं..

जाने क्यों मुझे लगता है फिर चुनाव आने वाले हैं..