नेता जी को आज हिंदी दिवस पर भाषण देने जाना है,
सुबह से ही नेता जी के अंदर अजब से हिंदी प्रेम के भाव जग रहे हैं
जैसे जगते हैं साल के दो दिन देशभक्ति के भाव।
नेता जी अपने अंदर हिंदी की दशा और दुर्दशा पर भाव उमेड़ने की कोशिश कर रहे हैं
याद करने की कोशिश कर रहे हैं शायद जीवन में हिंदी के लिए कुछ किया हो
तभी सुबह सुबह नेता जी का अंग्रेजी स्कूल में पढ़ रहा बेटा सोते से उठकर आया
पूछा - बाबू, आज स्कूल में छुट्टी है, मुझे चिड़ियाघर ले चलेंगे?
नेता जी को बेटे के मुंह से निकले शब्द ना जाने क्यों तीर से लगे।
नेता जी, बोले - ओ माई डियर सन...बाबू नहीं मुझे डैड बोल,
कितनी बार बताऊं तू हर बार भूल जाता है, क्या इसी लिए नोटों की गड्डियां खर्च कर अंग्रेजी स्कूल में पढाता हूं।
और चिड़ियाघर क्या जाएगा वहां तो अनपढ़ लोग जाते हैं , मैं तुम्हें ज़ू ले जाउंगा,
लेकिन एक बार ये बात तू अंग्रेजी में तो कहकर दिखा
बेटा बोला- बाबू क्या फरक पड़ता है, हिंदी अंग्रेजी में क्या है रखा?
मेरी किताब में तो लिखा है कि हिंदी हमारी मातृभाषा है, फिर इसे बोलने में शर्म क्यों करना?
नेता जी बोले- बेटा हम नेता हैं, हमारे दो चेहरे होते हैं
दो आंखें दो आंख तो सबके पास होते हैं, लेकिन हमारे पास एक असली और एक दिखाने वाले दो चेहरे होते हैं,
चेहरे ही नहीं दो चरित्र भी होते हैं, एक असली और एक दिखाने का,
इसलिए बेटा किताबों में लिखी बातोें पर मत जाओ
हिंदी पढ़ोगे, हिंदी बोलोगे तो बन जाओगे किसी सरकारी स्कूल के मास्टर,
लेकिन अंग्रेजी की पढ़ाई तुम्हें बनाएगी लाट साहेब,
इसलिए हिंदी को तू मातृभाषा भले मान लेकिन सोच ले बाप तेरी अंग्रेजी ही है।
सोचता है कवि रजनी नेता क्या गलत कह रहा है....
आजाद हुए हमें भले 72 साल हो गए हों, लेकिन हिंदी है तो आज भी अंग्रेजी की गुलाम ही।
इसलिए अगर सचमुच हिंदी को उसका स्थान दिलाना है तो सिर्फ एक दिन नहीं हर दिन को हिंदी दिवस की तरह ही मनाना है।
सुबह से ही नेता जी के अंदर अजब से हिंदी प्रेम के भाव जग रहे हैं
जैसे जगते हैं साल के दो दिन देशभक्ति के भाव।
नेता जी अपने अंदर हिंदी की दशा और दुर्दशा पर भाव उमेड़ने की कोशिश कर रहे हैं
याद करने की कोशिश कर रहे हैं शायद जीवन में हिंदी के लिए कुछ किया हो
तभी सुबह सुबह नेता जी का अंग्रेजी स्कूल में पढ़ रहा बेटा सोते से उठकर आया
पूछा - बाबू, आज स्कूल में छुट्टी है, मुझे चिड़ियाघर ले चलेंगे?
नेता जी को बेटे के मुंह से निकले शब्द ना जाने क्यों तीर से लगे।
नेता जी, बोले - ओ माई डियर सन...बाबू नहीं मुझे डैड बोल,
कितनी बार बताऊं तू हर बार भूल जाता है, क्या इसी लिए नोटों की गड्डियां खर्च कर अंग्रेजी स्कूल में पढाता हूं।
और चिड़ियाघर क्या जाएगा वहां तो अनपढ़ लोग जाते हैं , मैं तुम्हें ज़ू ले जाउंगा,
लेकिन एक बार ये बात तू अंग्रेजी में तो कहकर दिखा
बेटा बोला- बाबू क्या फरक पड़ता है, हिंदी अंग्रेजी में क्या है रखा?
मेरी किताब में तो लिखा है कि हिंदी हमारी मातृभाषा है, फिर इसे बोलने में शर्म क्यों करना?
नेता जी बोले- बेटा हम नेता हैं, हमारे दो चेहरे होते हैं
दो आंखें दो आंख तो सबके पास होते हैं, लेकिन हमारे पास एक असली और एक दिखाने वाले दो चेहरे होते हैं,
चेहरे ही नहीं दो चरित्र भी होते हैं, एक असली और एक दिखाने का,
इसलिए बेटा किताबों में लिखी बातोें पर मत जाओ
हिंदी पढ़ोगे, हिंदी बोलोगे तो बन जाओगे किसी सरकारी स्कूल के मास्टर,
लेकिन अंग्रेजी की पढ़ाई तुम्हें बनाएगी लाट साहेब,
इसलिए हिंदी को तू मातृभाषा भले मान लेकिन सोच ले बाप तेरी अंग्रेजी ही है।
सोचता है कवि रजनी नेता क्या गलत कह रहा है....
आजाद हुए हमें भले 72 साल हो गए हों, लेकिन हिंदी है तो आज भी अंग्रेजी की गुलाम ही।
इसलिए अगर सचमुच हिंदी को उसका स्थान दिलाना है तो सिर्फ एक दिन नहीं हर दिन को हिंदी दिवस की तरह ही मनाना है।