बुधवार, 12 अक्तूबर 2022

यादें मुलायम - पार्ट 1

 मुलायम सिंह यादव नहीं रहे …, 


अपने पत्रकारिता जीवन के दौरान मेरे भी उनसे जुड़े कुछ छोटे मोटे संस्मरण रहे आज सोचा कि उनको 1 जगह संकलित कर दूं जिससे याद में बने रहें।

पार्ट १-

1996-97 की बात होगी ज़ी न्यूज़ का लखनऊ में नया नया ब्यूरो खुला था मेरा घर लखनऊ होने की वजह से मैं भी दिल्ली छोड़कर लखनऊ आ गया था यहाँ आया तो दिल्ली और लखनऊ में बड़ा अंतर देखने को मिला


ख़ैर धीरे धीरे यहाँ के रंग ढंग में ढलना शुरू किया, तब नेताओं के पीछे माइक लेकर दौड़ने वाली परंपरा नहीं थी सलीक़े से नेता प्रेस कॉन्फ़्रेन्स बुलाते थे और अपनी बात कहते थे उसके बाद पत्रकारों को जो पूछना होता था पूछ लेते थे लेकिन यहाँ समस्याएं होती थी कि हम जैसे ही सवाल पूछते थे नेताओं को तो चुभते ही थे हमारे साथियों को भी बहुत चुभते थे कई बार मैंने सुना है आज कल के  नए नए लड़के पत्रकारिता में आ रहे हैं और यह भी नहीं सोचते हैं की बुजुर्ग नेता जी को मुलायम सिंह जी नहीं बोलना चाहिए लेकिन भाई मेरा मानना था छोटे हो या बड़े हम कोई क़ैडर तो है नहीं जो नेताजी बोलें, अब भले इन सबका महत्व ना हो लेकिन तब हुआ करता था, कोई बड़ा सवाल पूछे तो उसमें भी अगर नेताजी फँसने लगे तो तुरंत उसको काटकर दूसरा सवाल पूछ देना ये कलाकारी भी होती थी . हम TV वालों ने इसका एक जुगाड़ निकाल लिया आमों पर फ़र्स्ट फ़्लोर में होने वाली प्रेस कॉन्फ़्रेन्स में जाते ही नहीं थे बस वहाँ कैमरामैन जाता था 1 दो मिनट के लिए और कटवा इस बनाके निकल ले भागा हम नीचे पूरा सेटअप लगवा लेते थे पार्क में और वहीं पर सवालों जवाबों का सिलसिला शुरू होता था।

तीखे सवाल पूछना हमारे शौक से ज़्यादा हमारी मजबूरी थी हमें अपनी स्टोरी के हिसाब से बाइक चाहिए होती थी शायद ये बात प्रिंट के साथियों को हज़म नहीं होती थी।

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