शनिवार, 3 जुलाई 2010


कीशू भाया, कीशू भाया
बिस्किट खाया
दूध पिलाया;
फिर क्यों शोर मचाया ?
कीशू भाया, कीशू भाया
फिर क्यों शोर मचाया
तुमको मैंने खूब घुमाया
लोरी गाकर तुम्हें सुलाया
फिर क्यों शोर मचाया ?
कीशू भाया..कीशू भाया
फिर क्यों शोर मचाया ?
- गौरी
( ये कविता मैंने अपने भाई आदित्य के लिए

बड़े पापा के साथ मिलकर बनाई, और डैडी से लिखवाई)

सोमवार, 14 जून 2010

पहले व्यवस्था का प्रदूषण दूर करना होगा...!!


हिंदुस्तान की करोड़ों जनता की श्रद्धा जिस पतितपावनी गंगा मां पर है वो गंगा दिन पर दिन मैली क्यों होती जा रही है- समाजसेवी, सरकार और संत सब कितना भी रुदन कर लें गंगा नदी को गंदे नाले में बदलने में किसी के हाथ हिचक नहीं रहे । आखिर क्यों , गंगा क्यों साफ नहीं हो पा रही, कभी अमृत कहा जाने वाला गंगा का पानी आखिर क्यों जहर बन गया है। वजह बताने से पहले मैं आपको अपना छोटा सा अनुभव सुनाता हूं -

बात 1997 की है – मैं गंगा के बढते प्रदूषण पर एक स्टोरी करने कानपुर गया था – तमाम जगह घूम-घूमकर इसी हश्र पर पहुंचा कि हम तो गंगा की सफाई की बात करके सिर्फ पेड़ की जड़ धो रहे हैं , पेड़ की टहनियों और शिखाओं पर जमा प्रदूषण घुलघुलकर फिर जड़ों में पहुंच जाता है। सबसे पहले हम पहुंचे गंगा तट पर बनाए गए बिजली से चलने वाले शवदाह गृहों में। ये शवदाह गृह लाखों रुपये खर्च कर इसलिए बनाए गए थे कि लोग शव गंगा में ना बहाएं और प्रदूषण कम हो सके। लेकिन वहां पहुंचने पर पता चला कि रखरखाव की कमी के चलते ये शवदाह गृह पिछले दो बरसों से बंद पड़ा है। लाखों की कीमत से बना शवदाह गृह खुद अर्थी पर पड़ा था और घूसखोर लापरवाह अफसरों का इस पर एक बार भी ध्यान नहीं गया।

दूसरा वाकया एक लेदर टेनरी का था, वहां पहुंचकर जो देखा सुना लगा कि शायद ही गंगा कभी साफ हो पाए। कानपुर में टेनरी उद्योग से सबसे ज्यादा जहरीला तत्व गंगा में गिरता है, 200 से 300 के करीब इन टेनरी यूनिट्स में चमड़े को साफ किया जाता है, हर रोज सैकड़ों टन जहरीला कचरा गंगा में गिरता है, जाहिर है सरकार ने दिखाने को कुछ ना कुछ काम किए जरूर हैं मसलन अदालत के आदेश पर हर टेनरी में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए हैं। फिर आखिर वजह क्या है कि ट्रीटमेंट प्लांट के बाद भी गंगा मैली हो रही है यही जिज्ञासा मेरे मन में भी थी। मैं टेनरी में घुसा तो लोगों में कोई खास प्रतिक्रिया नही हुई, कैमरा देखकर भी कोई नहीं घबराया। टेनरी का मालिक आया , बातचीत हुई वो हमें ट्रीटमेंट प्लांट पर ले गया। मैंने कहा ट्रीटमेंट प्लांट के बावजूद गंगा मैली क्यों हो रही है – वो बोला अब ये हम क्या बता सकते हैं।
मैने पूछा अभी क्या काम चल रहा है
हां..हां चल रहा है जी 24 घंटे काम चलता है
अच्छा ट्रीमटमेंट प्लांट से आवाज नहीं आ रही
...नहीं साहब ये नहीं चलता ...
क्यों..
अरे साब कोई फायदा हो तब
ना
क्यों
अरे पहले चलाता था ...तो इलाके का पॉल्यूशन इंस्पेक्टर आकर कहता था कि पैसे दो नहीं तो .यूनिट सील करवा दूंगा कि ट्रीटमेंट प्लांट नहीं चलता
मैंने समझाया कि साहब प्लांट तो पूरा टाइम चलता है
बोला – इससे मुझे मतलब नहीं मुझे तो पैसा चाहिए, किसने कहा ट्रीटमेंट प्लांट चलाओ ...बस मुझे ट्रीट करते रहो सब ठीक रहेगा
मुझे ट्रीट नहीं किया तो चाहे जितना प्लांट चलाओ लिख दूंगा प्लांट नहीं चलता और बंद करवा दूंगा पूरा कारखाना
फिर उसे 10 हजार रुपये दिए...जाते समय कंधे पर हाथ रखकर मुझसे बोला- मियां काहे बिजली बरबाद करते हो देश में वैसे भी बिजली की कमी है प्लांट चलाकर 15 हजार का बिल देते हो 10 हजार मुझे दे दो , पांच हजार की तब भी बचत है ना...हंसते हुए बोला – सरकार कहती है बिजली बचाओ...आप लोग समझते ही नहीं....अब बताइये गंगा मइया कैसे साफ रहेंगी जब ऐसे मलेच्छ अफसर भरे पड़े हैं – टेनरी मालिक झनझनाकर बोला

मेरे पास कोई उत्तर नहीं था...बड़े गुस्से में आकर रिपोर्ट बनाई ...टीवी पर प्रसारित हुई इलाके के 3 इंस्पेक्टर और अफसरों का तबादला कर दिया गया, नए अफसर आ गए लेकिन गंगा का प्रदूषण अब भी कम नहीं हुआ, मुझे फिर कानपुर जाकर टेनरी और ट्रीटमेंट प्लांट की पड़ताल का मौका नहीं मिला है लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि सिस्टम का प्रदूषण अभी भी कायम है , है कोई इसे खत्म करने वाला।

सोमवार, 7 जून 2010

मजबूरी में पत्रकार नहीं बना मैं....

मैं पत्रकारिता के पेशे में मजबूरी से नहीं आया था, ऐसा नहीं था कि पहले इंजीनियरिंग की कोचिंग की फिर आईएएस के लिए ट्राई किया और जब कहीं सफलता नहीं मिली तो मजबूरी में रोजी रोटी चलाने के लिए पत्रकार बन गया। आज पत्रकारिता में बहुत से ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे लेकिन मेरा मामला ही कुछ अलग था। बीएससी की पढाई करते-करते दर्जन भर अखबारों में लिखने के अलावा एक हिंदी अखबार में रिपोर्टिंग का काम भी मिल गया था। क़ॉलेज से छूटने के बाद जब साथी सिनेमाघरों का रउख करते तब मैं अखबार के दफ्तर में बैठकर खबरें लिखता और पहले शाम फिर देर रात तक घर लौटने लगा। मेरे पिता जी पेशे से पशु चिकित्सक हैं चाहते थे कि मैं डॉक्टर या इंजीनियर बनूं लेकिन मैने उन्हे मना कर दिया कि इनमें मेरी कोई खास रुचि नहीं है। पिताजी ने बीएससी खत्म होते ही एक महंगे कंप्यूटर प्रोग्रामिंग कोर्स में दाखिला करवा दिया, अब इतनी फीस दी थी तो कोर्स पूरा किया और जितना खर्च हुआ था उतना कंप्यूटर से कमा कर दे दिया और कंप्यूटर को बाय बोल दिया - 0 से 9 के बीच मैं सारी जिंदगी काट नहीं सकता था ।

शनिवार, 15 मई 2010

मैं राजस्थान का शेखावत हूं......!!!

आज बीजेपी के एक युग का अंत हो गया, पूर्व उप राष्ट्रपति और राजस्थान के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके भैरों सिंह शेखावत का निधन हो गय़ा... आज पूरे दिन के बुलेटिन शेखावत जी को समर्पित रहे पूरे दिन बुलेटिन के दौरान मैं उन लम्हों को याद करता रहा जब मैं शेखावत जी से मिला था।
अपने पत्रकारिता के 15 साल के अनुभव में मेरा सामना कई खुर्राट नेताओं से हुआ शेखावत जी भी उनमें से एक रहे। बात 1996 की है उन दिनों मैंने जीटीवी में नौकरी करता था।
दिल्ली दफ्तर में नियुक्ति थी , लेकिन उन दिनों न्यूज चैनलों का नेटवर्क आजकल जैसा नहीं था इसलिए आसपास के राज्यों में भी मैं दिल्ली से ही स्टोरी कवर करने जाता था। राजस्थान मेरी पसंदीदा कर्मभूमि थी, वजह दिल्ली से नजदीकी दूसरे राजस्थान के शहरों की स्टोरी विजुअली बड़ी रिच होती थीं।
मैं दो चार स्टोरी आइडिया तलाशता और कूच कर जाता राजस्थान के शहरों की ओर, जन्माष्टमी का दिन था, मैं जयपुर पहुंचा पूरे दिन एक स्टोरी पर काम किया था - स्टोरी थी जयपुर शहर की एतिहासिक जेल को शिफ्ट करके वहां पर व्यावसायिक प्रतिष्ठान बनाने की- मैंने एतिहासिक इमारत वाला एंगल निकाला और दिनभर विजुअल इतिहासकारों और कांग्रेस नेताओं के इंटरव्यू किए, लेकिन अभी तो स्टोरी अधूरी थी सरकार की ओर से भी तो कोई बोलने वाला चाहिए था, रात के 11 बजे थे क्या करूं....पता नहीं कैसे हिम्मत हो गई, 11 बजे रात राज्य के मुख्यमंत्री भेरों सिंह शेखावत जी के घर के टेलीफोन की घंटी बजा दी। उधर से रौबीली आवाज में हैलो हुआ - मैंने कहा मैं जीटीवी से हूं शेखावत जी से बात करना चाहता हूं, अगर तकलीफ ना हो तो बात करा दें, उधर से आवाज आई बताइये बोल रहा हूं.....मैने कहा - मजाक मत कीजिए भैरों सिंह शेखावत जी से बात करा दीजिए, शेखावत जी बोले नहीं मजाक नहीं मैं भैरों सिंह शेखावत ही हूं, बताइये क्या काम है - मुझे विश्वास तो जरा भी नहीं था कि फोन पर दूसरी ओर शेखावत जी हैं लेकिन मैने बोलना शुरू कर दिया - मैंने कहा कि मैं दिल्ली से आया हूं, यहां की ऐतिहासिक इमारतों पर कुछ स्टोरी कर रहा हूं आपका इंटरव्यू चाहिए...
उधर से आवाज आई - नहीं भाई मैं रजत जी के लिए इंटरव्यू नहीं दे सकता
मैं चौंक गया - रजत जी को कोई मना कैसे कर सकता है
मैंने कहा- ऐसा क्यों
शेखावत जी बोले - रजत जी अपने प्रोग्राम में कहेंगे भैंरो सिंह शेखावत हाजिर हों एक मुजरिम की तरह बुलाएंगे मुझे ये मंजूर नहीं ... वो कई बार मुझे अपने प्रोग्राम के लिए बुला चुके हैं लेकिन मैं इसीलिए नहीं आता हूं
मैंने बड़ी विनम्रता से कहा - नहीं शेखावत जी, यहां कोई अदालत नहीं लगनी है बस एक दो विषयों पर
आपका वर्जन चाहिए। अगर बहुत व्यस्त ना हों तो
बोले- नहीं आप इतनी दूर से आए हैं आपको मना नहीं करूंगा, सुबह 10 बजे सेक्रेटियट आ जाइयेगा - डायरेक्टर इन्फोर्मेशन से संपर्क कर लीजिएगा। वहीं इंटरव्यू कर लेंगे नाश्ता भी साथ करेंगे।
दूसरे दिन सुबह मैं सेक्रेटियट पहुंचा, एक इन्फोर्मेशन आफिसर पहले से ही गेट पर रास्ता देख रहा था दिल्ली के नंबर की गाड़ी देखते ही लपक कर हमारे पास पहुंचा कहा जीटीवी से हैं
मैने कहा- जी
आइये डायरेक्टर साहब आपका इंतजार कर रहे हैं
तब मुझे भरोसा हुआ कि कल रात जिससे बात हुई वो सचमुच शेखावत जी थे
डायरेक्टर इन्फोर्मेशन के पास चाय पी और साढे दस बजे शेखावत जी के सामने साक्षात पहुंच गया
दुआ सलाम हुई...11 बजे इंटरव्यू के लिए सेटअप तैयार हो गया...तब तक मैने भी शेखावत जी के साथ नाश्ता किया जो थोड़ा तगड़ा हो गया, एक दिन पहले जन्माष्टमी के व्रत की भूख नाश्ते में ही मिटी ।
नाश्ते के दौरान शेखावत जी ने कहा कि मुझे लग नहीं रहा कि रात में तुम्ही से बात हुई थी अभी क्या उम्र है तुम्हारी....मैने उम्र तो नहीं बताई धीरे से बोला कलम के सिपाहियों को पहलवान होना जरूरी तो नहीं...जोर से हंसे बोले - अब यकीन हो गया तुम्ही थे
मूड अच्छा देखकर मैंने कहा कि सुबह 9 बजकर 59 मिनट तक मुझे भी नहीं लग रहा था कि आप से बात हुई, मैं सोच रहा था कि टेलिफोन ऑपरेटर ने हमें रात में बुद्धू बनाया , और आपके नाम पर बात की...
क्यों ?
मैने कहा- अरे किसी राज्य का मुख्यमंत्री कभी सीधे फोन उठाता है,
वो फिर जोर से हंसे
माहौल एकदम हल्का हो गया था...मेरा भी हौसला बढ़ गया था
सेट तैयार था
हम दोनों बैठे
रोल हुआ
मैने पहला सवाल ही पूरा जोर लगाकर उड़ेल दिया - शेखावत जी आप पर आरोप लग रहा है कि आप राज्य की सांस्कृतिक विरासत को मिटाने पर तुले हैं....मसलन जेल की ऐतिहासिक इमारत को शॉपिंग कॉम्पलेक्स बनाने जा रहे हैं।
मैं शेखावत जी का चेहरा देख रहा था सोच रहा था अच्छी बाइट मिलेगी....20 सेकेंड बीत गए वो मुझे घूरे जा रहे थे ...मैं सोच रहा था धीर गंभीर व्यक्ति थोड़ा सोच कर बोलते हैं .... 4 0 सेकेंड बीत गए
मैने टोका - शेखावत जी
शेखावत जी गरजे-
-" मैं यहां का शेखावत हूं मेरे ऊपर कोई आरोप नहीं लगाता "
मैं तो सन्न रह गया , यहां तो बात व्यक्तिगत होने लगी थी ...मेरी पहली ही बाउंसर पर राजनीति के माहिर ने स्वीप लगा दी थी
मैने तुरंत संभाला और अगली ही बॉल स्विंग करा दी कांग्रेस की ओर-
जी शेखावत जी , लेकिन कांग्रेस तो आपको पानी पी पी कर कोस रही है इस मामले में
तब जाकर कहीं शेखावत जी का रुख मेरी ओर से हटकर कांग्रेस की ओर हुआ
मुझे बाइट तो बहुत मजेदार मतलब हार्ड हिटिंग मिल गई थी लेकिन मन ही मन थोड़ा डर रहा था कि कहीं बॉस से कुछ शिकायत ना कर दें। फिर भी मैं थोड़ा संभलकर दनादन सवाल दागता गया और वो भी दनादन जवाब देते गए.... 10 मिनट में इंटरव्यू निपट गया
इंटरव्यू खत्म हुआ तो वो फिर पहले जैसे ही सामान्य हो गए...कोई मीटिंग थी जरूरी फिर भी उन्होने बैठकर अपने हाथ से हिदी में एक चिट्ठी लिखी रजत शर्मा के नाम, मैने सोचा जरूर मेरी शिकायत लिखी होगी, क्योंकि वो रजत जी के बहुत करीबियों में से हैं ये मुझे पता था। चलते समय उन्होने मुझसे कहा कि अगली बार आना तो हमारे मेहमान बनना...मैने कहा- देखते हैं, कोशिश करूंगा
खैर सब कर कराकर मैं बाहर निकला - देखा चिट्ठी का लिफाफा बंद नहीं था
सबसे पहले चिट्ठी देखी, उसमें लिखा था -

प्रिय रजत जी,
काफी कोशिशों के बाद भी आप मुझे अबतक पकड़ नहीं पाए
लेकिन आपके रिपोर्टर रजनीकांत ने मुझे पकड़ लिया। छोटी सी उम्र में
जिस निर्भीकता और चतुराई से ये काम करते हैं उसने मुझे प्रभावित किया है।

भैरों सिंह शेखावत

उसके बाद मैं कई बार जयपुर गया लेकिन दोबारा मिला नहीं, 5-6 महीने बाद अचानक एक दिन दिल्ली में राजस्थान हाउस के रेजिडेंट कमिश्नर का फोन आया कि- शेखावत जी की ओर से फेरी क्वीन में जाने का निमंत्रण है ...शनिवार को जाना है। पता नहीं उन दिनों खून में कितनी गरमी थी कहा भैरों सिंह जी को मेरी ओर से धन्यवाद कहिएगा लेकिन माफ कीजिएगा मैं सरकारी खर्चे पर यात्राएं और मौज मस्ती करने वाले पत्रकारों में नहीं हूं, मेरा मन नहीं करता...मुझे माफ करें
इस तरह शेखावत जी से दोबारा मिला तो नहीं लेकिन वो पहली और आखिरी मुलाकात आज भी ऐसा लगता है कि जैसे कल की ही बात हो ।
ईश्वर उस सरल, बेबाक और जिंदादिल इंसान की आत्मा को शांति दे।

- रजनीकांत मिश्र
15-05-2010