बुधवार, 3 अगस्त 2016

ऐ शहर कोई ना कहेगा अब तुझे 'बुलंद'शहर

ऐ शहर कोई ना कहेगा अब तुझे  'बुलंद'शहर
हम तो कहेंगे तुझे आदम शहर
लेकिन नहीं, आदम कितने भी अनपढ़ जाहिल रहे हों,
लेकिन इतने पाशविक तो कभी नहीं रहे होंगे;
किसी मां को, किसी १३ साल की बेटी को नहीं बनाया होगा
 उन्होने कभी शिकार
उस आदिम युग के किसी बाप को नहीं सुननी पड़ी होगी
दरिंदों का शिकार हो रही बेटी का चीत्कार,
और उस युग में किसी मां ने भी नहीं देखा होगा
अपने कलेजे का ऐसा बलात्कार
क्यों नहीं देखा होगा, मैं आपसे पूछ रहा हूं क्यों नहीं देखा होगा ?
क्योंकि वो बुलंद'शहर में नहीं जंगलों में रहते थे,
मैं कहता हूं मिटा दो ये शहर, मिटा दो ये कस्बे
आओ फिर जंगलों में लौट चलें
लेकिन उससे पहले उन सभी दरिंदों को मेरे हवाले कर दो,
उन्हें इस देश का कानून सजा नहीं दे पाएगा,
हम उन्हें जंगल में ले जाएंगे,
उन्हीं जंगलों में जहां उन्होने उस हैवानियत को अंजाम दिया था,
मैं उसी जगह ले जाकर उनका इंसाफ करूंगा, मौत नहीं दूंगा,
वो सजा दूंगा कि सुनकर जिसे याद कर पापियों के हाथ थर्राने लगें,
मुझे जंगलों में लौटना है,
जल्दी करो इस शहर में मेरा दम घुट रहा है
मुझे जंगलों में लौटना है,
जल्दी उन पापियों को मेरे हवाले कर दो।
मुझे जंगलों में लौटना है ।