सोमवार, 14 जून 2010

पहले व्यवस्था का प्रदूषण दूर करना होगा...!!


हिंदुस्तान की करोड़ों जनता की श्रद्धा जिस पतितपावनी गंगा मां पर है वो गंगा दिन पर दिन मैली क्यों होती जा रही है- समाजसेवी, सरकार और संत सब कितना भी रुदन कर लें गंगा नदी को गंदे नाले में बदलने में किसी के हाथ हिचक नहीं रहे । आखिर क्यों , गंगा क्यों साफ नहीं हो पा रही, कभी अमृत कहा जाने वाला गंगा का पानी आखिर क्यों जहर बन गया है। वजह बताने से पहले मैं आपको अपना छोटा सा अनुभव सुनाता हूं -

बात 1997 की है – मैं गंगा के बढते प्रदूषण पर एक स्टोरी करने कानपुर गया था – तमाम जगह घूम-घूमकर इसी हश्र पर पहुंचा कि हम तो गंगा की सफाई की बात करके सिर्फ पेड़ की जड़ धो रहे हैं , पेड़ की टहनियों और शिखाओं पर जमा प्रदूषण घुलघुलकर फिर जड़ों में पहुंच जाता है। सबसे पहले हम पहुंचे गंगा तट पर बनाए गए बिजली से चलने वाले शवदाह गृहों में। ये शवदाह गृह लाखों रुपये खर्च कर इसलिए बनाए गए थे कि लोग शव गंगा में ना बहाएं और प्रदूषण कम हो सके। लेकिन वहां पहुंचने पर पता चला कि रखरखाव की कमी के चलते ये शवदाह गृह पिछले दो बरसों से बंद पड़ा है। लाखों की कीमत से बना शवदाह गृह खुद अर्थी पर पड़ा था और घूसखोर लापरवाह अफसरों का इस पर एक बार भी ध्यान नहीं गया।

दूसरा वाकया एक लेदर टेनरी का था, वहां पहुंचकर जो देखा सुना लगा कि शायद ही गंगा कभी साफ हो पाए। कानपुर में टेनरी उद्योग से सबसे ज्यादा जहरीला तत्व गंगा में गिरता है, 200 से 300 के करीब इन टेनरी यूनिट्स में चमड़े को साफ किया जाता है, हर रोज सैकड़ों टन जहरीला कचरा गंगा में गिरता है, जाहिर है सरकार ने दिखाने को कुछ ना कुछ काम किए जरूर हैं मसलन अदालत के आदेश पर हर टेनरी में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए हैं। फिर आखिर वजह क्या है कि ट्रीटमेंट प्लांट के बाद भी गंगा मैली हो रही है यही जिज्ञासा मेरे मन में भी थी। मैं टेनरी में घुसा तो लोगों में कोई खास प्रतिक्रिया नही हुई, कैमरा देखकर भी कोई नहीं घबराया। टेनरी का मालिक आया , बातचीत हुई वो हमें ट्रीटमेंट प्लांट पर ले गया। मैंने कहा ट्रीटमेंट प्लांट के बावजूद गंगा मैली क्यों हो रही है – वो बोला अब ये हम क्या बता सकते हैं।
मैने पूछा अभी क्या काम चल रहा है
हां..हां चल रहा है जी 24 घंटे काम चलता है
अच्छा ट्रीमटमेंट प्लांट से आवाज नहीं आ रही
...नहीं साहब ये नहीं चलता ...
क्यों..
अरे साब कोई फायदा हो तब
ना
क्यों
अरे पहले चलाता था ...तो इलाके का पॉल्यूशन इंस्पेक्टर आकर कहता था कि पैसे दो नहीं तो .यूनिट सील करवा दूंगा कि ट्रीटमेंट प्लांट नहीं चलता
मैंने समझाया कि साहब प्लांट तो पूरा टाइम चलता है
बोला – इससे मुझे मतलब नहीं मुझे तो पैसा चाहिए, किसने कहा ट्रीटमेंट प्लांट चलाओ ...बस मुझे ट्रीट करते रहो सब ठीक रहेगा
मुझे ट्रीट नहीं किया तो चाहे जितना प्लांट चलाओ लिख दूंगा प्लांट नहीं चलता और बंद करवा दूंगा पूरा कारखाना
फिर उसे 10 हजार रुपये दिए...जाते समय कंधे पर हाथ रखकर मुझसे बोला- मियां काहे बिजली बरबाद करते हो देश में वैसे भी बिजली की कमी है प्लांट चलाकर 15 हजार का बिल देते हो 10 हजार मुझे दे दो , पांच हजार की तब भी बचत है ना...हंसते हुए बोला – सरकार कहती है बिजली बचाओ...आप लोग समझते ही नहीं....अब बताइये गंगा मइया कैसे साफ रहेंगी जब ऐसे मलेच्छ अफसर भरे पड़े हैं – टेनरी मालिक झनझनाकर बोला

मेरे पास कोई उत्तर नहीं था...बड़े गुस्से में आकर रिपोर्ट बनाई ...टीवी पर प्रसारित हुई इलाके के 3 इंस्पेक्टर और अफसरों का तबादला कर दिया गया, नए अफसर आ गए लेकिन गंगा का प्रदूषण अब भी कम नहीं हुआ, मुझे फिर कानपुर जाकर टेनरी और ट्रीटमेंट प्लांट की पड़ताल का मौका नहीं मिला है लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि सिस्टम का प्रदूषण अभी भी कायम है , है कोई इसे खत्म करने वाला।

सोमवार, 7 जून 2010

मजबूरी में पत्रकार नहीं बना मैं....

मैं पत्रकारिता के पेशे में मजबूरी से नहीं आया था, ऐसा नहीं था कि पहले इंजीनियरिंग की कोचिंग की फिर आईएएस के लिए ट्राई किया और जब कहीं सफलता नहीं मिली तो मजबूरी में रोजी रोटी चलाने के लिए पत्रकार बन गया। आज पत्रकारिता में बहुत से ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे लेकिन मेरा मामला ही कुछ अलग था। बीएससी की पढाई करते-करते दर्जन भर अखबारों में लिखने के अलावा एक हिंदी अखबार में रिपोर्टिंग का काम भी मिल गया था। क़ॉलेज से छूटने के बाद जब साथी सिनेमाघरों का रउख करते तब मैं अखबार के दफ्तर में बैठकर खबरें लिखता और पहले शाम फिर देर रात तक घर लौटने लगा। मेरे पिता जी पेशे से पशु चिकित्सक हैं चाहते थे कि मैं डॉक्टर या इंजीनियर बनूं लेकिन मैने उन्हे मना कर दिया कि इनमें मेरी कोई खास रुचि नहीं है। पिताजी ने बीएससी खत्म होते ही एक महंगे कंप्यूटर प्रोग्रामिंग कोर्स में दाखिला करवा दिया, अब इतनी फीस दी थी तो कोर्स पूरा किया और जितना खर्च हुआ था उतना कंप्यूटर से कमा कर दे दिया और कंप्यूटर को बाय बोल दिया - 0 से 9 के बीच मैं सारी जिंदगी काट नहीं सकता था ।