बुधवार, 6 दिसंबर 2017

सौराष्ट्र में 12 लोगों का ओपिनियन पोल

                          गुजरात चुनाव को लेकर राजनीति गरमाई हुई है, हिंदू, मुस्लिम और मंदिर मस्जिद का मसाला खूब उड़ेला जा रहा है लेकिन क्या ये मुद्दे जनता जनार्दन की जीभ से होकर दिमाग तक पहुंचेंगे...
ये तो 18 दिसंबर के नतीजे ही बताएंगे लेकिन इन मुद्दों से पहले जनता की क्या राय थी ये जाना मैंने दक्षिणी गुजरात यानी सौराष्ट्र की यात्रा में – हालांकि यात्रा निजी थी और मकसद शुद्ध धार्मिक ...लेकिन हम कलम घिसने वालों को वहां भी चैन कहां...सो द्वारका, बेट द्वारका से लेकर सोमनाथ तक की यात्रा के दौरान मैं डरते डराते लोगों को ओपिनियन पोल करता रहा...10-12 लोगों का ओपिनियन पोल ऐसा था जिसकी मुझे कल्पना नहीं थी...मुझे कश्मीर भारत विरोधी माहौल में काम करने का 5-7 साल का अनुभव था इसलिए मेरे सवाल होते थे – क्या लगता है भावेश भाई, इस बार मोदी जी की हर बार की तरह बंपर जीत होगी गुजरात में ? मतलब सितंबर के महीने में मेरी ये पूछने की हिम्मत नहीं थी कि इसबार बीजेपी गुजरात में जीतेगी या हारेगी...खैर मेरे सवालों के मुझे जो जवाब मिल रहे थे वो बिल्कुल चौकाने वाले थे...कोई कह रहा था कि नहीं पहले जैसी जीत नहीं हो सकती, कोई कह रहा था यहां बीजेपी के सिवा कोई विकल्प ही नहीं तो कई ऐसे भी थे जो अपना अकेला वोट किसी और को डाल कर बीजेपी को हराने का दम भर रहा था..उनकी नाराजगी की वजह भी जीएसटी और आधार कार्ड के बिना बैंक खातों से पैसे ना निकालने देने के नियम थे, द्वारका में मैं जिस होटल में रुका था उसका मालिक जीएसटी से परेशान था, बताइये द्वारका जैसा छोटा सा कस्बा...यहां सिर्फ श्रद्दालु ही आते हैं जो एक दिन यहां रुक कर लौट जाते हैं, पहले ही ग्राहकों का टोटा रहता था अब जीएसटी ने रेट और बढ़ा दिए तो लोग क्यों होटल में ठहरेंगे । यानी अभी तक सब बिना टैक्स के ही चल रहा था....द्वारका होटल के सामने ही पहली मंजिल पर एक अच्छा रेस्टोरेंट था...अच्छा रेस्टोरेंट इसलिए कि वहां खाना तो अच्छा मिल ही जाता है पेमेंट भी डिजिटल हो जाता है, लेकिन यहां घुसते ही मैंने रिसेप्शन पर पूछा-
पेमेंट कार्ड चल जाएगा,
वो बोला ना भाई ओन्ली कैश ...
.कैश तो है नहीं मेरे पास
आप ऑर्डर कर दो ...मंदिर कंपाउंड में ही HDFC का एटीएम है ..अधर बाजू मार्केट में SBI एटीएम है आप निकाल लो  
यानी यहां भी खाता ना बही....बाकी सब सही
द्रारका से बेट द्वारका जाने के लिए टैक्सी ली. रास्ते में ड्राइवर से बतकही शुरू की...
वो तो लगता था भरा ही पड़ा था....जीएसटी, नोटबंदी, आधार सब गिना डाले भाई ने
जहां जहां मैं डरते डरते सवाल पूछता था...वहीं थोड़ी देर में बीजेपी के बचाव की मुद्रा में आ जाता था
अरे इससे टैक्स आएगा, अरे इससे काला धन रुकेगा... जैसी मेरी दलीलें कोई मानने को तैयार नहीं था. बेट द्वारका के लिए फेरी पर सवार हुआ, बेट द्वारका के रहने वाले एक बुजुर्ग दंपत्ति मेरे साथ ही बैठे थे...मैने धीरे से उनसे बातचीत शुरू हुई पता चला दोनों ओखा गए थे, आधार कार्ड जुड़वाने ...मेहनल मजदूरी करने वाले बुड्ढे, बुढिया दोनों के अंगुलियों के निशान मशीन पकड़ ही नहीं पा रही है, दोनों गहरे सदमे में हैं, हाथ की लकीरों को उन्होंने इससे पहले कभी इतना नहीं कोसा होगा जितना आज कोस रहे हैं..वो भी तब जब लकीरें मिट गई हैं... मायूस बुढिया मेरी तरफ देखकर बोली- मतलब मेरा पैसा डूब गया....मैंने उसे समझाया नहीं नहीं – पैसा कहीं नहीं जाएगा...उंगलियों के निशान नहीं मिले तो कोई बात नहीं...आंखों की पहचान से हो जाएगा...ये भी नहीं हुआ तो भी कुछ नहीं होगा पैसा कहीं नहीं जाएगा....बुड्ढे ने बड़बड़ाकर बुढिया को गुजराती में ही कुछ कहा...फिर दोनों चुप हो गए...बुड्ढा गुजराती में ही किसी और से बात करने लगा....मैंने धीरे से बुढिया से पूछा कि क्या बोला अभी बुड्ढा ....वो धीरे से बोली- कह रहा है कि ये भी दिल्ली वाला है इसकी बातों में मत पड़...ये भी बातें ही फेंक रहा है” ….मुझे बुड्ढे पर बहुत गुस्सा आया मैं तो उसे समझा रहा हूं वो मुझे दिल्ली से आया फेंकू बता रहा है...बहरहाल नाव आधे घंटे में बेट द्वारका पहुंच गई...दर्शन किए
द्वारका फिर लौट आया .
दूसरा दिन –
दूसरे दिन मुझे सोमनाथ जाना था सुबह सुबह 6 बजे उठा होटल वाले ने कहा चाय 7 बजे के बाद ही मिलेगी, अभी जरूरी हो तो गोमती होटल के सामने चायवाला है वहां से ले लें....होटल के बाहर चायवाला बड़े आराम से चाय बेच रहा था...ये अचंभा भी द्वारकाधीश की नगरी में ही संभव है...बाकी देश की नगरी में कहीं संभव नहीं था, फीकी चाय बोली, सिगरेट मुंह में दबाई...बोला चाचा पेटीएम कर दूं.....चायवाला बोला समझ में नहीं आया..चाय में कुछ और डालना है क्या..इलायची तो डाला है
मैंने उसे हाथ से इशारा किया नहीं कुछ नहीं वो टूटे पैसे नहीं हैं – 500 का नोट है 10 रुपये की चाय के लिए 500 का नोट ठीक नहीं लगता ना....अब तक मेरा हौसला बढ़ चुका था... मैंने कोसना शुरू किया मोदी जी ने तो ऐसा बरबाद कर दिया है कि एटीएम से निकालो तो 100 रुपया निकलता ही नहीं सीधे 500 का निकलता है अब क्या करूं इसको चांटूं ...?
लेकिन हाय रे मेरा दुर्भाग्य यहां भी मेरा दांव उल्टा पड़ गया, चाय वाला बोला 500 का हो या 2000 का मुझे दो मैं चेंज दूंगा- मोदी जी को क्यों कोस रहा...वो आदमी बहुत अच्छा है देश का भला कर रहा है...कुछ लोग देश में अच्छे लोगों को काम करने नहीं देना चाहते और ऐसे ही लोग विरोध कर रहे हैं....मैंने तमाम दलीलें रखी जीएसटी, आधार, नोटबंदी...उसने सब काट दीं...मैंने अंत में पूछा – चाचा, चायवाले के नाते उसका पक्ष तो नहीं ले रहे ना...वो बोला मुझे इससे मतलब नहीं कि वो चायवाला है या देश का पीएम...सही बात को सही ही कहूंगा....मैंने पूछा तो चाचा टैक्स देते हो...मोदी जी कहते हैं कि सबको टैक्स देना चाहिए...अब वो पीछे हट गया...मैं यहां लोगों को चाय पिलाता हूं

किसी तरह रोटी का जुगाड़ करता हूं ...मैं क्या टैक्स दूंगा...मैं हाथ में चाय का कप लिए होटल की ओर चल दिया....                 

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

सुंदर आकलन