मंगलवार, 6 अक्तूबर 2015

लगता है फिर चुनाव आने वाले हैं ...


लगता है फिर चुनाव आने वाले हैं ...

लगता है फिर चुनाव आने वाले हैं
पिछले दो एक हफ्तों से मुझे लगने लगा है
कि हवाएं अचानक अपना रुख बदलने लगी हैं
सूरज की तपन अचानक फिर बढ़ने लगी है
हर दिशाओं में शोर बढने लगा है
आसमान के नीलेपन में भी लाली छाने लगी है

जाने क्यों मुझे लगता है फिर चुनाव आने वाले हैं..


सड़क किनारे नागफनियों में कांटे बढ़ने लगे हैं
नन्हें पेड़ पौधे भी कुम्हलाने लगे हैं
बड़े दरख्तों की कोमल फुनगियां भी मुरझाने लगी हैं
फूलों के रंग उड़ने लगे हैं, कलियां खिलने से खौफ खाने लगी हैं

जाने क्यों मुझे लगता है फिर चुनाव आने वाले हैं..

नुक्कड़ों पर नजर आने वाले बुजुर्गों के गुट भी छितराने लगे हैं
अब शर्मा जी और खान साहब दूर-दूर नजर आते हैं
पड़ोस वाले नकवी साहब, पंडित जी से नजरें चुराते हैं

जाने क्यों मुझे लगता है फिर चुनाव आने वाले हैं..

अचानक जान पहचान वाले मुझे बताने लगे हैं कि ये हिंदू है
और वो मुसलमां है

अचानक मोहल्ले के मंदिर और मस्जिदों पर टंगने लगे हैं भोंपू

आयतों और आरतियों से मोहल्ला गूंजने लगा है



अचानक काले कारनामे करने वाले शोहदे ने पहनने शुरू कर दिए हैं झक्क सफेद कपड़े

अब वो मुझे देखकर पहले की तरह आंखे भी नहीं तरेरता,
झूठी मुस्कान के साथ बस हाथ जोड़ लेता है ...
पहले मुझे उससे डर नहीं लगता था लेकिन अब बहुत डर लगता है

जाने क्यों मुझे लगता है फिर चुनाव आने वाले हैं..


अचानक हर शहर में गायों भरे ट्रक पकड़े जाने लगे हैं
पता नहीं ट्रक वाले ही गायों को पकड़वा रहे हैं
या पकड़ने वाले ही ट्रकों को भर-भरकर ला रहे हैं
ना जाने वो कौन हैं जो बेगुनाह बेजुबानों को कटवा रहे हैं

जाने क्यों मुझे लगता है फिर चुनाव आने वाले हैं..


अचानक चीजों के दाम दोगुने हो गए हैं
दाल, चावल, आटा आसमां में उड़ रहे हैं
आलू, टमाटर, टिंडे जमीन पर अपने अपने रंग दिखा रहे हैं
दुकान का सेठ अपने मुनीम को समझा रहा है
10 पेटी इलेक्शन खर्चे के लिए भी निकालना है

जाने क्यों मुझे लगता है फिर चुनाव आने वाले हैं..

जाने क्यों मुझे लगता है फिर चुनाव आने वाले हैं..




रविवार, 9 अगस्त 2015

बीजेपी के भाग से बिहार का छींका टूटेगा ?


गया के गांधी मैदान से आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के लोगों को विकास के खूब सपने दिखाए. सपने भी दिखाए और बिहार की नीतीश सरकार को जमकर कोसा भी...मोदी ने कहा 25 साल से इन्हीं लोगों ने बिहार पर राज किया है और नतीजा ये कि बिहार दिन पर दिन पिछड़ता चला गया । हालांकि भाषण देते वक्त पीएम मोदी ने इस बात को जानबूझकर भुला दिया कि बिहार में नीतीश कुमार के साथ कंधा मिलाकर बीजेपी ने भी करीब 8 साल गठबंधन की सरकार चलाई है। मोदी ने कहा कि बिहार अभी भी बीमारू राज्य है और राजस्थान और मध्य प्रदेश की तरह अगर बिहार को भी इस सूची से बाहर लाना है तो यहां भी बीजेपी की सरकार बनवानी होगी। मोदी के दावे पर बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने पलटवार किया है, दावे को गलत बताते हुए उन्होंने कहा है कि बिहार अब बीमारू राज्य नहीं है, नीतीश ने पूछा कि क्या केंद्र केवल उन्हीं राज्यों को मदद करेगा जहां उनकी पार्टी की सरकार है ।
पीएम मोदी ने कहा दिल्ली से विकास की गंगा लगातार बिहार की तरफ बह रही है लेकिन नीतीश सरकार तो उल्टा लोटा लिए खड़ी है जो इससे कुछ हासिल ही नहीं कर रही है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालू यादव पर निशाना साधते हुए कहा कि बिहार में जंगलराज- 2 शुरू हो रहा है और जेल से बुरी बुरी चीजें सीख कर लौटे लोगों के जरिए जहर फैलाया जा रहा है । मोदी के जेल वाले इस बयान पर लालू यादव और नीतीश कुमार ने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को लपेट लिया , लालू ने पूछा है कि अमित शाह जेल से क्या सीख कर लौटे थे एक बार उन्हीं से पूछ लें । बीजेपी की आंखों की किरकिरी बन चुके नीतीश और लालू के गठबंधन पर भी पीएम ने निशाना साधा, पीएम ने पूछा जिन लोगों ने अभी जहर पिया है वो बाद में किसपर निकालेंगे । दरअसल बिहार में नीतीश से गठबंधन के बाद लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि उन्होने जहर पिया है, नीतीश के चंदन और भुजंग वाले बयान को लेकर भी मोदी ने तंज कसते हुए पूछा कि कौन चंदन कुमार है और कौन भुजंग प्रसाद मुझे तो पता ही नहीं। दरअसल बिहार में नीतीश और लालू की दोस्ती बीजेपी के लिए एक नई मुसीबत बन कर खड़ी हो गई है, उसका बिहार में जीत का सपना धुंधलाने सा लगा है लेकिन बीजेपी को अभी भी उम्मीद है कि किसी तरह बिल्ली के भाग से गठबंधन का छींका टूट जाए जिससे बिहार की मलाई एक बार उसे अकेले चट करने का मौका मिल सके, हालांकि लालू और नीतीश की जोड़ी उन्हें ये मौका देगी इसमें थोड़ा संदेह है।

सोमवार, 3 अगस्त 2015

फर्स्ट डिवीजन की मौत !

IIT रुडकी के छात्र महीने भर के ड्रामे के बाद आखिर वापस ले लिए गए....भले हालात कुछ दूसरे हों लेकिन जिस दिन से ये मामला सामने आया था उसी दिन से मुझे अपने वो दोस्त याद आने लगे जो करीब ३० साल पहले अचानक गुमनामी में खो गए, आज तक ना उनका कोई फोन आया ना किसी से उनके बारे में सुनने को मिला, क्या किया होगा, क्या उन्होने नदी में कूद कर जान दे दी होगी या किसी ट्रेन के नीचे लेट गए होंगे। अगर ऐसा हुआ होगा तो सिर्फ उस शख्स के पीछे जिसे छात्रों के भविष्य ये ज्यादा अपने स्कूल की झूठी इज्जत की चिंता थी। कहानी लखनऊ के एक नामी स्कूल से जुड़ी है नाम बताना उतना जरूरी इसलिए भी नहीं क्योंकि जिन तक ये बात पहुंचानी है उनको इसमें अपनी आत्मा जरूर दिख जाएगी, हां तो १९८५ के आसपास की बात होगी, नौवीं पास कर हम दसवीं में गए थे, हमें सुबह ८ बजे से शाम ६ बजे तक स्कूल नें ही पढना होता था, पढने के बजाय घोटा लगाना कहें तो ज्यादा सही होगा, क्योंकि हाईस्कूल की पढाई के लिए कितनी देर पढने की जरूरत होती है.......लेकिन हमारे स्कूल में तो कुछ बच्चों को तस्कूल में ही बिस्तर तक लगवा दिए गए, और जो बच्चे इसके बाद भी तोतों को रटाने वाले रिंग मास्टरों को कम से कम फर्स्ट डिवीजन लाने का भरोसा नहीं दिला पाए उन्हें स्कूल छोडने का आदेश सुना दिया गया, इनमें से कई केजी नर्सरी से इसी स्कूल में पढ रहे थे, बहुत रौए गिडगिडाए, उन्ही मां बापों ने आकर उनके पांव भी पकडे जिन्हे तराजू में फल फूल से तौलने का स्कूलवाले ढकोसलेबाज नाटक रचते थे, लेकिन विश्व शांति का लबादा ओढकर घूम रहे मार्केटियरों को जरा भी दया ना आई, २५-३० बच्चों को एक झटके में निकाल दिया गया, आखिर क्यों किस बात का गुरूर था उन्हें, छटनी पहले पांचवीं में, फिर आठवीं में, फिर नवीं में ......फिर भी दिन रात रटाने वाले बच्चों को भी अपनी उम्मीदों पर ढाल नहीं सके तो ये बच्चों की नहीं रिंगमास्टरों की गलती है, जिस लडके ने हाईस्कूल में पूरे यूपी में टॉप किया वो अगले साल फर्स्ट डिवीजन भी नहीं ला सका, गलती उस लडके में नहीं स्कूल के सिस्टम में थी, इधर बीच सेशन में निकाले गए लडकों को कहीं दाखिला मिल नही सकता था, सो लोग मारे मारे घूमते रहे साल बरबाद हुआ होगा, कुछ इस जिल्लत में आत्मा से मर गए होंगे, कुछ नफरत की आग में जल गए होंगे, ३० साल बाद नाम तो किसी के याद नहीं लेकिन उनके वो दर्द भरे चेहरे आज भी याद हैं, इव सब के कत्ल का जिम्मेदार जो भी हो उसे ईंट पत्थर की अदालतों में शायद सजा ना दी जा सके लेकिन कुदरत उनका इंसाफ जरूर करे, जिन मां बापों की आंखों के सपने छिने उनके गुनहगारों को कुदरत वैसी ही सजा दे। स्कूल के मेरे कुछ दोस्तों कुछ अध्यापकों को शायद मेरी बातें अच्छी ना लगें उनसे मैं माफी चाहता हूं लेकिन क्या करूं फर्स्ट डिवीजन का शोकेस लगाकर अपनी दुकान चमकाने और बचपन की हत्या करने वालों का असली चेहरा भी तो सामने लाना जरूरी है। स्कूल के २०० बच्चों में से छाटकर १०० बच्चों को अव्वल दिखाना कोई बड़ा काम नहीं है, हम तो तुम्हें तब गुरु मानेंगे जब सारे २०० बच्चों को तुम अव्वल वाले मुकाम पर पहुंचा दोगे।